Pages

Sunday, 12 November 2017

सूरज है तो रात के घर से निकल

सूरज है तो रात के घर से निकल
गर तू चाँद है तो बादल से निकल

बार बार मिन्नत न करा ऐ दोस्त
अब तो ,लाज के घूंघट से निकल

अपनी तस्वीर मेरी आँखों में देख
कुछ देर काँच के दर्पन से निकल

ख़ुदा सब का है, हिफाज़त करेगा
बस अपने अंदर के डर से निकल

चेहरा ही नहीं वज़ूद भी चमकेगा
इक बार आग के पैकर से निकल

मुकेश इलाहाबादी ----------------

No comments:

Post a Comment