सूरज है तो रात के घर से निकल
गर तू चाँद है तो बादल से निकल
बार बार मिन्नत न करा ऐ दोस्त
अब तो ,लाज के घूंघट से निकल
अपनी तस्वीर मेरी आँखों में देख
कुछ देर काँच के दर्पन से निकल
ख़ुदा सब का है, हिफाज़त करेगा
बस अपने अंदर के डर से निकल
चेहरा ही नहीं वज़ूद भी चमकेगा
इक बार आग के पैकर से निकल
मुकेश इलाहाबादी ----------------
गर तू चाँद है तो बादल से निकल
बार बार मिन्नत न करा ऐ दोस्त
अब तो ,लाज के घूंघट से निकल
अपनी तस्वीर मेरी आँखों में देख
कुछ देर काँच के दर्पन से निकल
ख़ुदा सब का है, हिफाज़त करेगा
बस अपने अंदर के डर से निकल
चेहरा ही नहीं वज़ूद भी चमकेगा
इक बार आग के पैकर से निकल
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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