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Sunday 12 November 2017

बदन के ज़ख्म पाँव के छाले तो छुपा लूँगा

बदन के ज़ख्म पाँव के छाले तो छुपा लूँगा
पेट की आग, दिल के शोले कँहा ले जाऊँगा

जिस्म काट दोगे जला दोगे मार दोगे मगर
ख्वाब में तुम्हारे प्रेत बन - बन कर आऊँगा

तीरगी को मुझसे हर हाल में डरना ही पड़ेगा
कि सूरज हूँ,मै ख़ाक होने तक उजाला बाँटूंगा

सुबह होते ही अपनी खिड़कियाँ खोल देना
बुलबुल हूँ तुम्हारी छत पे देर तक चहकूँगा

मुकेश इत्र के समंदर में नहा के आया हूँ, मै 
ज़माने से लिपट जाऊँगा, देर तक महकूँगा

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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