Pages

Monday 12 August 2019

सपने मे मै तुम्हें, चूम रहा हूँ

सपने
मे मै तुम्हें,
चूम रहा हूँ
एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पे
अचानक तुम मुझे धक्का दे देती हो
अब मै गिर रहा हूँ
एक गहरी
बहुत गहरी खाई में
लेकिन यह क्या?
मै टूटा फूटा नही
मरा नहीं
ज़िंदा हूँ
साबुत हूँ,
पहले की तरह
नज़रें उठा कर
मै पहाड़ की चोटी पर तुम्हें ढूंढता हूं
तुम वहां नज़र नहीं आती हो
मै ऊपर देखता हूँ असमान की तरफ
तुम अपने पंख पसार
उड़ी जा रही हो
मुझसे दूर बहुत दूर
अब हमारे तुम्हारे दरम्यान
सिर्फ एक खाई ही नही
खाली असमान भी है
मै दुख से कातर हो, तुम्हें
तुम्हारा नाम ले के पुकारता हूँ
तुम तो मेरी पुकार नही सुनती हो
पर वो गहरी घाटी
जिसमे तुमने
मुझे धक्का दिया है
भर जाती है
तुम्हारे नाम की प्रतिध्वनि से
और मै डूब जाता हूँ
अवसाद की गहरी नदी मे
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,

No comments:

Post a Comment