बेहतर
होता मज़दूर दिवस पे
ऐ सी में बैठ के
कंप्यूटर/लैपटॉप या मोबाइल पे
मज़दूरों पे कविता लिख के
लाइक बटोरने की जगह
एक दिन ख़ुद
अपनी पीठ पे बोझा ढोते
सुपरवाइसर की वजह बेवज़ह गलियां खाते
बेबसी ओढ़ते
मजबूरी बिछाते
भूखे सोते
आंसू पीते
अपने अधिकारों से वंचित होते
और फिर मज़दूर दिवस पे कविता लिख के
उनके साथ गाते
होता मज़दूर दिवस पे
ऐ सी में बैठ के
कंप्यूटर/लैपटॉप या मोबाइल पे
मज़दूरों पे कविता लिख के
लाइक बटोरने की जगह
एक दिन ख़ुद
अपनी पीठ पे बोझा ढोते
सुपरवाइसर की वजह बेवज़ह गलियां खाते
बेबसी ओढ़ते
मजबूरी बिछाते
भूखे सोते
आंसू पीते
अपने अधिकारों से वंचित होते
और फिर मज़दूर दिवस पे कविता लिख के
उनके साथ गाते
जबकि हमें अच्छी तरह मालूम है
मज़दूर दिवस पे लिखी एक भी कविता
एक भी मज़दूर नहीं पढ़ेगा
क्यों कि अधिकांश अपढ़ होंगे
जो पढ़ भी सकते होंगे वे
भूख पढ़ेंगे
मजबूरी पढ़ेंगे
ज़िल्लत और ज़हालत पढ़ेंगे
या हमारी कविता पढ़ेंगे ??/
मज़दूर दिवस पे लिखी एक भी कविता
एक भी मज़दूर नहीं पढ़ेगा
क्यों कि अधिकांश अपढ़ होंगे
जो पढ़ भी सकते होंगे वे
भूख पढ़ेंगे
मजबूरी पढ़ेंगे
ज़िल्लत और ज़हालत पढ़ेंगे
या हमारी कविता पढ़ेंगे ??/
मजदूर
को कविता की नहीं
उचित मजदूरी की ज़रुरत है
मजदूर को
मजदूर दिवस पे बधाइयों और
भाषणों की नहीं
रोज़ मर्रा के जीवन में सम्मान
और बराबरी का एहसास चाहिए
मजदूर दिवस पे
क्या हमने किसी मजदूर की ज़्याती ज़िंदगी
के दर्द को महसूसा ??
क्या इस एक महीने के लॉक डाउन में जा के
उनकी झोपड़ी में देखा ??
अगर नहीं तो
हमें मज़दूर दिवस पे कविता लिखने का कोइ
अधिकार नहीं है
लिहाज़ा
इस मज़दूर दिवस पे
कविता लिख के लाइक बटोरना बंद किया जाए
और वास्तिवक कविता लिखी जाए
को कविता की नहीं
उचित मजदूरी की ज़रुरत है
मजदूर को
मजदूर दिवस पे बधाइयों और
भाषणों की नहीं
रोज़ मर्रा के जीवन में सम्मान
और बराबरी का एहसास चाहिए
मजदूर दिवस पे
क्या हमने किसी मजदूर की ज़्याती ज़िंदगी
के दर्द को महसूसा ??
क्या इस एक महीने के लॉक डाउन में जा के
उनकी झोपड़ी में देखा ??
अगर नहीं तो
हमें मज़दूर दिवस पे कविता लिखने का कोइ
अधिकार नहीं है
लिहाज़ा
इस मज़दूर दिवस पे
कविता लिख के लाइक बटोरना बंद किया जाए
और वास्तिवक कविता लिखी जाए
साल में एक दिन खुद मज़दूर बना जाए
मुकेश इलाहाबादी --------------
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