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Saturday, 2 May 2020

तुम्हारे बारे में सोचना

तुम्हारे
बारे में सोचना
ताज़ा खिले ओस में नहाये
गुलाब के बारे में सोचना है
तुम्हारी
बाँहों को
छूने की कल्पना
अखरोट के पेड़ की मुलायम डाल
को छूने सहलाने जैसा है
तुम्हारी हँसी
सुनना बहुत ऊंचाई से गिरते
जलप्रपात की दूधियाँ धार की
आवाज़ को सुनना है
तुम्हारी यादों में होना
गर्म थपेड़ों के बाद
बारिश की ठंडी फुहार में
भीगने जैसा है
तुम्हारे साथ होना
एक उत्सव में होना होता है
रंग - बिरंगे मेले में होना है
मुकेश इलाहाबादी ---------

3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'बन्दी का यह दौर' (चर्चा अंक 3691) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  2. अहसासों की सीधी सरल अभिव्याक्ति

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