जब से हमारे रस्ते जुदा हो गए
वो खुश और हम तनहा हो गए
अपने ही हाथो से तराशा जिन्हे
वे ही पत्थर मेरे ही ख़ुदा हो गए
जिनके लिए झील थे दरिया थे
मुफलिसी में हम सहारा हो गए
फकत इक झलक देखी खुदा की
उसी पल से तो हम बावरा हो गए
तू हाले दिल मेरा न पूछ मुकेश
हम क्या थे और ये क्या हो गए
मुकेश इलाहाबादी ---------------
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-08-2020) को "श्री कृष्ण जन्माष्टमी-आ जाओ गोपाल" (चर्चा अंक-3791) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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योगिराज श्री कृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बढ़िया इलाहाबादी जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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