Pages

Monday 31 August 2020

फूलों की नाव है

 एक

फूलों की नाव है
और एक ही पतवार है
जिसके सहारे
घूम रही है
गोल - गोल
वहीं की वहीँ
दरियाए ज़िंदगानी में
यही गोल - गोल घेरे अब
धीरे धीरे - छोटे और छोटे होते जा रहे
इतने छोटे की
एक वृत में तब्दील हो चुके हैं
ये छोटा वृत्त
भंवर में तब्दील हो चुका है
जिसमे मेरी नाव
डूब रही है
तेज़ तेज़ घुमते हुए
आह ! मेरे पास
उम्मीद के नाम पे
दूर बहुत दूर क्षितिज पे
एक चमकता सितारा है
अगर वो अपनी
चांदी सी किरण मेरी तरफ भेज दे
तो शायद उसे पकड़
अपनी फूलों की नाव
को उसे चमकीले तारे की रस्सी से
बाँध किसी ठाँव लग जाऊं

पर जानता हूँ
ऐसा कुछ होगा नहीं
और एक दिन मै
तनहाई की नदी के
भंवर में - फूलों की नाव
और एक पतवार के साथ

और --
तब रह जायेगा नदी के ऊपर
एक स्याह आकाश
और एक छोटा सा चमकता सितारा

मुकेश इलाहाबादी -------------------

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को  "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज"   (चर्चा अंक 3812)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    ReplyDelete
    Replies
    1. aabahr mitra - aap ka is pravishti ko pasand karne aur aage kahee post karne ke lye

      Delete
  2. आदरणीय मुकेश इलाहाबादी जी, नमस्ते! आपकी अतुकांत रचना भावात्मक है, सम्प्रेषण में उत्तम है। हार्दिक साधुवाद!
    मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

    ReplyDelete