Pages

Thursday, 22 October 2020

यूँ कुछ इस तरह हम भीग जाते हैं

 यूँ कुछ इस तरह हम भीग जाते हैं 

ग़म के बादल आते हैं बरस जाते हैं 


हम तो रिन्द हैं हमें पीने से गरज़ 

जहाँ दिखी मधुशाला ठहर जाते हैं 


कई बार सोचता हूँ मै रात ढलते ही 

ये चाँद और सितारे किधर जाते हैं 


हम फकीरों को दौलत से क्या गरज

जिधर देखी मुहब्बत उधर जाते हैं 


मुकेश हैरत होती है देख कर कैसे 

वायदा कर के लोग मुकर जाते हैं 


मुकेश इलाहाबादी ---------------




No comments:

Post a Comment