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Monday, 5 October 2020

इधर तू पानी में पाँव पखारती है

इधर 

तू पानी में पाँव पखारती है 

उधर 

मेरी आँखों में मछलियाँ तैरती है 


उधर तू

अपने दरीचे खोलती है 

इधर मेरे घर

चाँदनी उतरती है 


हवाऐं 

जो तेरे दर से आती हैं 

उन्ही से तो 

मेरी साँसे महकती है 


ये और बात 

तुझसे ही मेरी धड़कन है 

पर तू है की 

मुझको भूली रखती है 


मुकेश इलाहाबादी --------


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