न साफ हवा है न धूप है न पानी है
हम जी रहे हैं खुदा की मेहरबानी है
न हौसला है न शौक है न जुनून है
क्या कहूं बड़ी बेशर्म सी जवानी है
किसी को बताऊँ भी तो बताऊँ क्या
उदास मौसम हैं उदास ज़िंदगानी है
ऐसा नहीं दर्दों ग़म सिर्फ मेरे पास हो
बेचैनियाँ अब घर -घर की कहानी है
कौन कहता है रगों में खून बहता है
रवाँ खुदगर्जी है चोरी है बेईमानी है
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-10-2020) को "जीवन है बस पाना-खोना " (चर्चा अंक - 3847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-10-2020) को "जीवन है बस पाना-खोना " (चर्चा अंक - 3847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर
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