चिरइया
ने अपनी चोंच
मेरे कंधे पे रख के
अपनी चमकदार आँखों की
गोल -गोल पुतलियों में
नटखट शैतानी लिए मुस्कुरा रही थी
मैंने भी
उसकी आँखों में झांकते हुए
उसकी पीठ पे हाथ फेरने लगा
वो मुझसे और लिपट गयी
मैंने अपने होठों को
गोल - गोल कर के
उसकी चोँच के नज़दीक
और नज़दीक करता गया
ताकि उसकी चोंच से अपने होठ
मिला पाता
पर तभी वो अपनी डैने फड़फड़ाती हुई
एक मीठी शरारत मेरे तरफ फेंकती हुई
उड़ गयी किचन में
मेरे लिए एक गरमा गरम चाय बनाने
और मै एक बार फिर
मुस्कुरा के
अपनी गर्दन झुका दी लैपटॉप पे
शब्दों के जंगल में
मुकेश इलाहाबादी --------------
मेरे
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