क्या
करता शिकायत कर के
किसी से
जिंदगी जब नाराज़ हो
ख़ुद ही से
मेरी प्यास ही
मर चुकी थी
बहुत पहले
बेवजह क्यूँ रखता मैं
रिश्ता नदी से
तेरा नाम रह रह के
सुनाई पड़ता है
जब भी
अपनी साँसे सुनता हूँ
खामोशी से
तू लड लेता
झगड लेता मैं
सह लेता
बहुत दर्द होता है
सीने मे
तेरी बेरुखी से
सितारों ने ढूँढ लिए
अपने अपने ठिकाने
मुक्कू मैंने भी
दोस्ती कर ली
तीरगी से
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-11-2020) को "कैसा जीवन जंजाल प्रिये" (चर्चा अंक- 3896) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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