चाहत तो है मै भी ज़माने की तरह हो जाऊँ
थोड़ा सा खुदगर्ज़ थोड़ा सा मगरूर हो जाऊँ
उम्र भर फलक पे आवारा बादलों सा फिरा
बरसूँ और बरस कर मै भी समंदर हो जाऊँ
फुर्सत किसी है जो मेरे दिल की दास्ताँ पढ़े
लोग खूब पढ़ेंगे गर सनसनी खबर हो जाऊँ
जो भी आता हो इक नया ज़ख्म दे जाता है
ज़माना डरेगा मुझसे भी जो खंज़र हो जाऊँ
इश्क़ के नदी में अब कौन उतरता है मुक्कू
सोचता हूँ मै दरिया से अब पत्थर हो जाऊँ
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
बहुत सुंदर दिल को छूती अभिव्यक्ति।
ReplyDelete