ख़ुदा, 
ने पहले पहल जब रात बनाई 
तो रात बहुत उदास थी 
बहुत स्याह थी 
हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा 
अजब सी दहशत होती 
रात के नाम से 
लोग रात की पाली में आने से डरते थे 
उन्ही दिनों की बात है 
एक प्रेमी जोड़ा जो दिन के उजाले में 
नहीं मिल पाता 
रात मिलने की ठानी 
पर रात इतनी स्याह थी की 
हाथ को हाथ भी सुझाई न देता था 
उस नीम अँधेरे में 
पूरी क़ायनात सोई हुई थी 
सारे परिंदे 
सारे फूल 
सारी कलियाँ 
तब उस प्रेमिका न 
अपने आँचल से कुछ सलमा सितारे ले केफ़लक़ पे 
उछाल दिए और 
 आसमान में ढेरों सितारे जगमग - जगमग करने लगे 
फिर उसने अपनी दूधिया हँसी को ज़मीन में बिखर जाने दिए 
जिससे' रातरानी ' के फूल खिले 
और रात महकने लगी 
फिर उसने अपनी झपकती पलकों से 
स्याह रात को निहारा 
ढेर सारे जुगनू बिजली बन चमकने लगे 
अपना ये श्रृंगार देख रात खुश हो गयी 
और तब 
ये दोनों पागल प्रेमियों ने 
धरती का बिछौना बना 
आसमान की चादर ओढ़ी 
और देर तक की "केलि"
और - सुबह खुश - खुश चले गए अपने नगर 
(तब से ही लोगों ने मुहब्बत के लिए रात का वक़्त मुक़र्रर कर दिया 
क्यूँ कि तब से रात इतनी सुहानी होने लगी है )
और ,,,,
जानती हूँ सुमी ??
वो प्रेमी जोड़ा कौन था ???
एक तुम ,,, और एक ये पागल प्रेमी 
देखो हँसना नहीं मुस्कुराना नहीं 
मेरी प्यारी सुमी  ....... 
मुकेश इलाहाबादी ----------------------